सधन

कविता
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सधन घना सा तेरा साया,
हर पल मुझको ही भरमाया
ठंडी ओस पर आकर छाया
ईश्वर किसके रूप में आया
मदमत हवा झोके से आया
हँस कर किसी ने बहलाया
पात- वृक्ष जी भर मुस्काया
पीले -पत्तों का मन भर आया
टूट -टूट कर सिमट बिखर गए
जीवन में सब नीरस वृथा गया
देखों ईश्वर किससे रूठ गया
"अरु " मधु सपनों में ना आया
प्रेम से पूरित वो नहीं हो पाया
आराधना राय "अरु"

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