मन की भूमि




साभार गूगल


उपज रहा मन की भूमि पे
विप्लव अंकुर का ही धान
किस पे बाड़ लगा रोकोगे
जान मचा हुआ हो भूचाल

भूखा पेट राम ना क्या जाने
कोडी और छदाम क्या जाने
रवि और रंजन की बात यहाँ
अश्रू बहे या तन का लहू बहे
मान ले जो तुझ से हृदय कहे

नारी की लज़्ज़ा की बात कहूँ
माँ के उधड़े तन को देख कर
कौन सा मनुज है जो ये कहे
तेरा मुझसे भी कोई  नाता है
आराधना राय "अरु"






  

Comments

Popular posts from this blog

याद

कोलाहल

नज्म बरसात